कभी वीरानों में भी थी मस्तियाँ

कभी वीरानों में भी थी मस्तियाँ
जब तेरे हाथों ने हाथ था थामा
अब इतनी भीड़ में भी हैं तनहा
जाने के बाद जाना जान-ए-जाना

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यह ज़रूरी नही हर सक्ष्स मशीहा ही हो,