मर गए हम मगर खुलो रही आँखें;

ज़ख्म इतने गहरे हैं इज़हार क्या करें
हम खुद निशान बन गए वार क्या करें
मर गए हम मगर खुलो रही आँखें
अब इससे ज्यादा इंतज़ार क्या करें!

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