वक़्त-ऐ-सफ़र करीब हैं बिस्तर समेट लूँ

वक़्त-ऐ-सफ़र करीब हैं बिस्तर समेट लूँ !
बिखरा हुवा दर्द का दफ्तर समेट लूँ !!
फिर जाने हैं मिले न मिले यारो !
जो साथ तेरे बिताया वो मंज़र समेट लूँ !

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यह ज़रूरी नही हर सक्ष्स मशीहा ही हो,