तेरी सज़ा तब तक कबूल हैं मुझे !

तेरी सज़ा तब तक कबूल हैं मुझे !
जब तक मेरे शरीर में जान हैं....!!
कैसे दुश्मनों से गिला करू मैं !
जब मेरे अपने ही मुझ पे मेहरबान हैं !!

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यह ज़रूरी नही हर सक्ष्स मशीहा ही हो,