वक़्त-ऐ-सफ़र करीब हैं बिस्तर समेट लूँ लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप अप्रैल 19, 2015 वक़्त-ऐ-सफ़र करीब हैं बिस्तर समेट लूँ !बिखरा हुवा दर्द का दफ्तर समेट लूँ !!फिर जाने हैं मिले न मिले यारो !जो साथ तेरे बिताया वो मंज़र समेट लूँ ! लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप टिप्पणियाँ
चमक सूरज की नहीं मेरे किरदार की है, अक्टूबर 09, 2015 चमक सूरज की नहीं मेरे किरदार की है, खबर ये आसमाँ के अखबार की है, मैं चलूँ तो मेरे संग कारवाँ चले, बात गुरूर की नहीं, ऐतबार की है...!! और पढ़ें
रूठना मत मुझे मनाना नहीं आता मार्च 12, 2015 रूठना मत मुझे मनाना नहीं आता दूर मत जाना मुझे बुलाना नहीं आता तुम भूल जाओ तुम्हारी मर्ज़ी मगर मैं क्या करूं, मुझे तो भूल जाना भी नहीं आता... और पढ़ें
बहुत खूबसूरत हो तुम; अक्टूबर 09, 2015 बहुत खूबसूरत हो तुम; खुद को दुनिया की बुरी नज़रों से बचाया करो; सिर्फ आँखों में काजल ही काफी नहीं; गले में नींबू, मिर्च और चप्पल भी लटकाया करो। और पढ़ें
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